हिन्दुत्व
हिन्दुत्व के अर्थ हैं- हिन्दु भावना तथा हिन्दु होने का भाव । हिन्दुत्व धर्म का पर्यायवाची है, जो भारत वर्ष में प्रचलित उन सभी आचार-विचारों, व्यक्ति और समाज में पारस्परिक सामाजिक समरसता, संतुलन तथा मोक्ष प्राप्ति के सहायक तत्वों को स्पष्ट करता है। यह एक जीवन-दर्शन और जीवन पद्धति है जो मानव समाज में फैली समस्याओं को सुलझाने में सहायक है। अभी तक हिन्दुत्व को मजहब के समानार्थी मानकर उसे गलत समझा गया था, उसकी गलत व्याख्या की गई, क्योंकि मजहब मात्र पूजा की एक पद्धति है जबकि हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मानव जीवन का समग्रता से विचार करता है। समाजवाद और साम्यवाद भौतिकता पर आधारित राजनैतिक एवं आर्थिक दर्शन है जबकि हिन्दुत्व एक ऐसा दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। कोई व्यक्ति मात्र सुविधाओं की प्राप्ति से प्रसन्न नहीं रह सकता। हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है जो व्यक्ति की सभी वैध आवश्यकताओं और अभिलाषाओं को संतुष्ट करती है ताकि मानवता के सिद्धांतों के साथ प्रसन्न रह सके।
संस्कृत: सनातन धर्म एक धर्म या, जीवन पद्धति है। जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।
यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।
हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई “पोप”। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति–जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर।
हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।
संक्षेप में, हिन्दुत्व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?– गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात– गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो–वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ‘ हीनं दूषयति स हिन्दु ‘ अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।
हिन्दुत्व धर्म का पर्यायवाची है, जो भारत वर्ष में प्रचलित उन सभी आचार-विचारों, व्यक्ति और समाज में पारस्परिक सामाजिक समरसता, संतुलन तथा मोक्ष प्राप्ति के सहायक तत्वों को स्पष्ट करता है। यह एक जीवन-दर्शन और जीवन पद्धति है जो मानव समाज में फैली समस्याओं को सुलझाने में सहायक है। अभी तक हिन्दुत्व को मजहब के समानार्थी मानकर उसे गलत समझा गया था, उसकी गलत व्याख्या की गई, क्योंकि मजहब मात्र पूजा की एक पद्धति है जबकि हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मानव जीवन का समग्रता से विचार करता है। समाजवाद और साम्यवाद भौतिकता पर आधारित राजनैतिक एवं आर्थिक दर्शन है जबकि हिन्दुत्व एक ऐसा दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। कोई व्यक्ति मात्र सुविधाओं की प्राप्ति से प्रसन्न नहीं रह सकता। हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है जो व्यक्ति की सभी वैध आवश्यकताओं और अभिलाषाओं को संतुष्ट करती है ताकि मानवता के सिद्धांतों के साथ प्रसन्न रह सके।
अंतरराष्ट्रीय शब्दकोष और केरीब्राउन के अनुसार हिंदुत्व वेबस्टर के अँग्रेजी भाषा के तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोष के विस्तृत संकलन में हिन्दुत्व का अर्थ इस प्रकार दिया गया है :- “यह सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विश्वास और दृष्टिकोण का जटिल मिश्रण है। यह भारतीय उप महाद्वीप में विकसित हुआ। यह जातीयता पर आधारित, मानवता पर विश्वास करता है।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक “द हिन्दू व्यू ऑफ लाईफ” में हिन्दुत्व के स्वभाव का विवरण दिया है। “अगर हम हिन्दुत्व के व्यावहारिक भाग को देखें तो हम पाते हैं कि यह जीवन पद्धति है न कि कोई विचारधारा। हिन्दुत्व जहाँ वैचारिक अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता देता है वहीं वह व्यावहारिक नियम को सख्ती से अपनाने को कहता है।
‘धर्म जिसे ऐतिहासिक कारणों से ‘हिन्दू धर्म’ कहा जाता है वह जीवन के सभी नियमों को शामिल करता है । जो जीवन के सुख के लिए आवश्यक है। भारत के उच्चतम न्यायालय की ओर से विचार व्यक्त करते हुये न्यायमूर्ति जे. रामास्वामी ने उक्त बात कही । (ए.आई.आर. 1996 एल.सी. 1765) –
हिन्दू जीवन पद्धति के अनेक विशिष्ट लक्षण हैं। इसके प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं।
व्यक्तियों एवं अन्य जीवित प्राणियों के प्रति जो हमारे सहयोगी रहे हैं, कृतज्ञता का भाव रखना, हिन्दू जीवन पद्धति है। ईश्वर के किसी रूप अथवा चुनी गई विधि से उपासना का आधार भी यही भावना है। पुन: यही भावना देवताओं के समान माता, पिता एवं शिक्षक के प्रति आदर का आधार है।
दूसरों के प्रति सहृदय होना विशेषकर उनके प्रति जिनको इसकी तत्काल आवश्यकता है। उन्हें भोजन, धन, दवा अथवा अन्य किसी प्रकार की सहायता प्रदान करना ही ईश्वर सेवा है । इसलिए कहा गया है की नर सेवा ही नारायण सेवा है।
साथी मनुष्यों एवं अन्य जीवित प्राणियों को शारीरिक अथवा मानसिक चोट नहीं पहुँचाना।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता एवं शिक्षक का आदर भक्तिभाव से कर उनकी सेवा ईश्वर के समान ही करनी चाहिये। विशेषत: उसे अपने माता-पिता के अशक्त एवं वृद्ध होने पर देखभाल करनी चाहिये। तथा उन्हें बाहर वृद्धाश्रम (ओल्ड एज रेस्क्यू हाऊसेज) में नहीं ढकेलना चाहिये। यह हिन्दू जीवन पद्धति का एक अति आवश्यक मूल्य है।
स्त्रीत्व को अत्यधिक आदर प्रदान करना, हिन्दू जीवन पद्धति के महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है। स्त्री को कामसुख की वस्तु न मानकर, दैवीय-सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्वीकार किया जाता है।
मनुष्य सहित सभी जीवित प्राणियों के प्रति प्रेम एवं दया भाव रखना चाहिये क्योंकि उनमें से प्रत्येक में हमारी तरह ही आत्मा है और जिसमें परमात्मा (ईश्वर) से विकसित होने वाला समान प्रकाशपुंज निहित है। यही हिन्दू जीवन पद्धति का एक अन्य आयाम है। हिन्दू जीवन पद्धति सरल जीवन तथा पानी, खनिज, वृक्ष एवं वनस्पतियों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के न्यूनतम उपयोग पर बल देती है, क्योंकि इनका लाभ सदैव ही सभी जीवित प्राणियों के लिये होना चाहिये।
अवैधानिक धन का अर्जन न करना, अनैतिक एवं अवैधानिक इच्छाओं की पूर्ति में संलग्न नहोना तथा एक सच्चा जीवन बिताना हिन्दू जीवन पद्धति का ही एक अन्य पक्ष है। यहसच्चाई सिद्धांत है केवल नीति मात्र नहीं।
एक मनुष्य को ‘आत्म संयम’ के गुण का विकास करना चाहिए क्योंकि यही केवल उसके मन को नियंत्रित कर सकता है।मन ही मनुष्य के सभी अच्छे बुरे कर्मों का स्रोत होय है । व्यक्ति बौद्धिक एवं वित्तीय संसाधनों को इस रूप से नियमित करने हेतु कि इनका उपयोग सदैव अच्छे कार्यों के लिये हो संयम का गुण अति आवश्यक है।
व्यक्ति के विचार, वाणी तथा कर्म के बीच सामंजस्य होना चाहिये। इसका अभिप्राय है किव्यक्ति को वही बोलना चाहिये, जो वह अपने मन में सोचना है और तदनुरूप ही कार्य करनाचाहिये। यही शरीर, मन एवं आत्मा की सच्चाई है।
एक पुरुष एवं स्त्री के मध्य विवाह के माध्यम से निर्मित पति-पत्नी के संबंधों कीपवित्रता, जिससे परिवार अस्तित्व में आता है तथा इसके बीच संबंधों का अटूट होना हीहिन्दू जीवन पद्धति में प्रतिपादकों द्वारा प्रदत्त सुदृढ़ आधार है। उस पर हीसामाजिक जीवन संरचित है।
माँ (माता) को ईश्वर के समान, सर्वोच्च पद इसलिये दिया जाता रहा है, क्योंकि वहव्यक्ति को जन्म देती है, उसका पालन-पोषण करती है, अपने बच्चों के कल्याण एवं भलाईके लिये, अपनी माता से बढ़कर दूसरा कोई प्यारा नहीं है। सभी स्त्रियों को माता केसमकक्ष ही स्थान दिया गया है।
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एकईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियाँ हैं।
वर्तमान में हिंदुत्व के नाम पर सिर्फ हिन्दू धर्म को मानना ही हिन्दुत्व कहलाता हैपरन्तु इसकी परिभाषा इससे भी कही ज्यादा विस्तृत है। वर्तमान में साम्यवादियों एवंसर्क्युलर वादियों द्वारा हिंदुओं के चरमपंथियो या कट्टरपंथी होने के आरोप लगाये जारहे हैं।